Friday, April 8, 2011

खुशबु

चांदनी रात के हाथो पे सवार उतरी है |
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||

इस में कुछ रंग भी है , ख्वाब भी, खुशबुएँ भी|
ज़िलमिलाती हुई ख्वाहिशे भी , आरजू भी |
इसी खुशबू में कई दर्द भी, अफसाने भी |
इसी खुशबू ने बनाये कई देवाने भी |
मेरे आँचल पे उम्मीदों की कतार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||

इसी खुशबू से कई यादो के दर खुलते है|
मेरे पैरो से जो लिपटे तो सफ़र खिलते है|
यही खुशबू जो मेरे घर से उठा लाई थी |
अब किसी तौर पलट कर नहीं जाने देती |
मेरी देहलीज़ बुलाती है मुझे लौट आओ|
यही खुशबू मुझे वापस नहीं आने देती |

रंज और दर्द में डूबी यह बहार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है ||

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