पास आकर दूर चले जाते है ॥
हम अकेले थे , अकेले रेह जाते है
दिल का दर्द किसे बताये
मरहम लगाने वाले ही , ज़ख़्म दे जाते है
आपकी आँखों में सितारा नज़र आता है ,
डूबते दिल को किनारा नज़र आता है,
कैसे रोके आरज़ू के समंदर को ?
हर सितम आपका , इशारा नज़र आता है ॥
वक़्त के पन्ने पलट कर ,
फिर वो हसींन लम्हे जीने को दिल चाहता है
कभी मुस्कुराया करते थे सब दोस्त मिलकर ,
उन्हें आज देखने को दिल तरस जाता है ॥
Wednesday, April 27, 2011
गुजरा वक़्त
Friday, April 8, 2011
खुशबु
चांदनी रात के हाथो पे सवार उतरी है |
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||
इस में कुछ रंग भी है , ख्वाब भी, खुशबुएँ भी|
ज़िलमिलाती हुई ख्वाहिशे भी , आरजू भी |
इसी खुशबू में कई दर्द भी, अफसाने भी |
इसी खुशबू ने बनाये कई देवाने भी |
मेरे आँचल पे उम्मीदों की कतार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||
इसी खुशबू से कई यादो के दर खुलते है|
मेरे पैरो से जो लिपटे तो सफ़र खिलते है|
यही खुशबू जो मेरे घर से उठा लाई थी |
अब किसी तौर पलट कर नहीं जाने देती |
मेरी देहलीज़ बुलाती है मुझे लौट आओ|
यही खुशबू मुझे वापस नहीं आने देती |
रंज और दर्द में डूबी यह बहार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है ||
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||
इस में कुछ रंग भी है , ख्वाब भी, खुशबुएँ भी|
ज़िलमिलाती हुई ख्वाहिशे भी , आरजू भी |
इसी खुशबू में कई दर्द भी, अफसाने भी |
इसी खुशबू ने बनाये कई देवाने भी |
मेरे आँचल पे उम्मीदों की कतार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है||
इसी खुशबू से कई यादो के दर खुलते है|
मेरे पैरो से जो लिपटे तो सफ़र खिलते है|
यही खुशबू जो मेरे घर से उठा लाई थी |
अब किसी तौर पलट कर नहीं जाने देती |
मेरी देहलीज़ बुलाती है मुझे लौट आओ|
यही खुशबू मुझे वापस नहीं आने देती |
रंज और दर्द में डूबी यह बहार उतरी है|
कोई खुशबू मेरी देहलीज़ के पार उतरी है ||
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